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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - उच्चतर शैक्षिक मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2687
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - उच्चतर शैक्षिक मनोविज्ञान

अध्याय - 2

मनोविज्ञान के प्रमुख सम्प्रदाय एवं शिक्षा में उनका योगदानं

(Major Schools of Psychology and their Contribution towards Education)

 

प्रश्न- व्यवहारवाद की प्रमुख विशेषताएँ बताइए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में व्यवहारवाद सम्प्रदाय का क्या योगदान है?

उत्तर -

परिचय - आधुनिक युग में विकसित होने वाले मनोविज्ञान के सम्प्रदायों में व्यवहारवाद (Behaviourism) का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मनोविज्ञान के इस सम्प्रदाय को स्थापित करने का श्रेय जे० बी० वाटसन को दिया जाता है। वाटसन के अतिरिक्त इस सम्प्रदाय के मुख्य प्रतिपादक हैं-मैक्स मियर, एलबर्ट पी० वाइज, हण्टर, टॉलमैन, हल, स्किनर तथा कार्ल एस० लैशले1

व्यवहारवाद की मान्यता

व्यवहारवाद ने मनोविज्ञान को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करने का सफल प्रयास किया था। वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान स्वीकार किया तथा व्यवहार की एक यथार्थ व्याख्या प्रस्तुत की। व्यवहारवाद के जनक वाटसन ने मनोविज्ञान को अन्य विज्ञानों के समान एक यथार्थ एवं निश्चित विज्ञान बनाने में सर्वाधिक योगदान दिया। इस उद्देश्य के लिए वाटसन ने मनोविज्ञान के क्षेत्र में समस्त अमूर्त, अज्ञेय तथा अज्ञात तत्वों के बहिष्कार पर बल दिया। इस विषय में वाटसन का यह कथन उल्लेखनीय है, "व्यवहारवादी इस निर्णय पर पहुँचे कि वे अमूर्त और अज्ञेयों के साथ काम करने से अब और अधिक सन्तुष्ट नहीं रह सकते। उन्होंने निश्चय किया कि या तो मनोविज्ञान को छोड़ दिया जाए या उसे प्राकृतिक विज्ञान बनाया जाए।" व्यवहारवादी सम्प्रदाय के अनुसार, मनोविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की एक विशुद्ध प्रयोगात्मक शाखा है। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों का उद्देश्य व्यवहार की व्याख्या, नियन्त्रण तथा उसके विषय में भविष्यवाणी करना है। इस सम्प्रदाय ने मनोवैज्ञानिक अध्ययन के लिए विशुद्ध वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाने की बात पर बल दिया है। यही कारण है कि इस सम्प्रदाय के विद्वान् मनोविज्ञान में अन्तर्दर्शन विधि को अपनाने के पूर्ण रूप से विरुद्ध थे। इसके अतिरिक्त व्यवहारवाद के प्रवर्तक वाटसन ने मनोविज्ञान में चेतना के प्रत्यय को भी स्वीकार नहीं किया। यही नहीं, इस सम्प्रदाय के मनोवैज्ञानिक मानसिक दशाओं, मन, संकल्प तथा प्रतिभा आदि प्रत्ययों को भी कोई महत्त्व प्रदान नहीं करते। व्यवहारवाद में व्यवहार के अध्ययन को ही प्राथमिकता. दी गई है। व्यवहार की व्याख्या उत्तेजना (Stimulus) तथा अनुक्रिया (Response) के रूप में प्रस्तुत की गई है। व्यवहारवाद का प्रतिपादन संरचनावाद तथा साहचर्यवाद के विरुद्ध विद्रोह के रूप में किया गया है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि वाटसन मनोविज्ञान के अध्ययन में किसी भी. प्रकार के अन्धविश्वासों, रहस्यों तथा दार्शनिक परम्पराओं को सम्मिलित करने के विरुद्ध थे। यही कारण था कि नई पीढ़ी के मनोवैज्ञानिकों ने वाटसन के नेतृत्व को स्वीकार किया। वाटसन ने व्यक्तित्व के विकास में पर्यावरण सम्बन्धी कारकों को विशेष महत्त्व दिया। उसकी मान्यता थी कि व्यक्ति के पर्यावरण में अभीष्ट परिवर्तन करके व्यक्तित्व को नितान्त भिन्न रूप में विकसित किया जा सकता है। इस मान्यता को स्वीकार करके यह कहा जा सकता है कि पर्यावरण में सुधार कर समाज में व्याप्त दोषों का उन्मूलन किया जा सकता है। वाटसन ने अपने मनोवैज्ञानिक अध्ययन में मानव-व्यवहार के साथ-साथ पशु-व्यवहार अर्थात् पशु-मनोविज्ञान को भी विशेष महत्त्वं एवं स्थान प्रदान किया। इसके लिए वाटसन ने पशु-मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण अध्ययनों का आयोजन किया। वाटसन की मान्यता थी कि पशु-व्यवहार के व्यवस्थित अध्ययन से मानव-व्यवहार को समझने में भी सहायता मिलती है। यही कारण था कि वाटसन ने पशु-व्यवहार के अध्ययन को विशेष महत्त्व दिया। व्यवहारवाद के अनुसार मुख्य मनोवैज्ञानिक प्रत्ययों का संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित है-

प्रत्यय

(1) व्यवहार की व्याख्या - व्यवहारवाद में व्यवहार की विशिष्ट व्याख्या प्रस्तुत की गई है। वाटसन के अनुसार, मानवीय तथा पशुओं के समस्त आन्तरिक तथा बाहरी, अर्जित तथा अनर्जित व्यवहार की व्याख्या उत्तेजना-अनुक्रिया के रूप में की जा सकती है। किसी भी व्यवहार के लिए सम्बन्धित उत्तेजना का होना अनिवार्य होता है। उत्तेजना से ही प्राणियों में अनुक्रियाओं की उत्पत्ति होती है। ये अनुक्रियाएँ आन्तरिक भी हो सकती हैं तथा बाहरी भी। इसी प्रकार ये अनुक्रियाएँ अर्जित भी हो सकती हैं तथा अनर्जित भी।

(2) संवेदना और प्रत्यक्ष - वाटसन ने इन्द्रियों और जीव की अनुक्रिया के अतिरिक्त किसी अन्य संवेदना और प्रत्यक्षीकरण को स्वीकार नहीं किया। वाटसन ने मौखिक रिपोर्ट (Verbal Report) की विधि को अधिक महत्त्व न देकर मौखिक अनुक्रिया (Verbal Response) को प्राथमिकता दी है। वैसे वाटसन मौखिक रिपोर्ट तथा मौखिक अनुक्रिया में स्पष्ट अन्तर नहीं कर पाया।

(3) स्मृति प्रतिमाएँ - वाटसन ने स्पष्ट किया है कि प्राणियों का समस्त व्यवहार इन्द्रियों और मांसपेशियों की गति का परिणाम होता है। वह स्मृति - प्रतिमाओं को कोई महत्त्व नहीं देता। उसने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि तथाकथित स्मृति प्रतिमाएँ और कुछ नहीं बल्कि इन्द्रियों तथा पेशियों की ही प्रतिक्रियाएँ हैं।

(4) अनुभूति तथा संवेग - व्यवहार को सर्वाधिक महत्त्व प्रदान करने वाले मनोवैज्ञानिक वाटसन ने स्पष्ट किया कि हमारी अनुभूतियाँ भी वास्तव में इन्द्रिय-चालित ही होती हैं। उनके अनुसार व्यक्ति को प्राप्त होने वाली सुख की अनुभूति वास्तव में व्यक्ति की इन्द्रियों से प्राप्त होने वाली उत्तेजनाओं तथा मांसपेशियों में होने वाली गतियों का ही परिणाम होती है।

जहाँ तक व्यक्ति के संवेगों का प्रश्न है, वाटसन के अनुसार व्यक्ति के सम्पूर्ण शरीर में तथा विशेष रूप से जठर सम्बन्धी तथा ग्रन्थियों से सम्बन्धित व्यवस्था में होने वाले अत्यधिक क्षोभ के परिणाम होते हैं। विभिन्न संवेगों में जठर तथा ग्रन्थियों में होने वाले क्षोभ के प्रतिमान अलग-अलग होते हैं। इसी सिद्धान्त के आधार पर वाटसन ने स्पष्ट किया है कि संवेगों की प्रबलता की दशा में जीव में बाहरी क्रियाएँ तथा आन्तरिक परिवर्तन होते हैं।

(5) सीखने की प्रक्रिया - व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक वाटसन ने व्यक्ति की सीखने की प्रक्रिया का भी अपने ढंग से स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया है। उसने थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित प्रभाव के नियम के स्थान पर अभ्यास के नियम को महत्त्व दिया। उसने स्पष्ट किया कि सीखने की प्रक्रिया में नवीनता तथा आवृत्ति का अधिक महत्त्व है। ये कारक अभ्यास के नियम से सम्बद्ध हैं। वाटसन ने सीखने की प्रक्रिया के प्रारम्भ में प्रयास एवं त्रुटि विधि को प्रतिपादित किया तथा बाद में प्रतिबद्ध अनुक्रिया सिद्धान्त को सीखने की प्रक्रिया के सिद्धान्त के रूप में मान्यता प्रदान की।

(6) चिन्तन - मनोविज्ञान में चिन्तन की प्रक्रिया को भी विशेष महत्त्व दिया जाता है। वाटसन ने चिन्तन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए कहा है कि चिन्तन व्यक्ति का सुप्त गत्यात्मक व्यवहार है। वाटसन की मान्यता है कि प्राणियों के समस्त व्यवहार इन्द्रिय-चालक होते हैं। इस स्थिति में उसने चिन्तन की प्रक्रिया को भी इसी आधार पर स्पष्ट करने का प्रयास किया है। उसने स्पष्ट किया है कि प्रायः अनेक बच्चे तथा कुछ वयस्क भी चिन्तन के दौरान बोलते हैं जबकि अधिकांश व्यक्ति चिन्तन के समय चुप रहते हैं अर्थात् बोलते नहीं। इस अन्तर का कारण वाटसन ने बाहरी गति के स्थान पर आन्तरिक व्यवहार का होना बताया है। इस मान्यता के आधार पर कहा गया है कि चिन्तन की प्रक्रिया में वाक् अंगों की प्रक्रिया इतनी सूक्ष्म होती है कि वह स्पष्ट रूप से प्रकट नहीं होती। चिन्तन की प्रक्रिया में जिह्वा तथा मुख की भी कुछ क्रियाएँ सम्पन्न होती हैं। वाटसन की इस मान्यता से विभिन्न नए प्रयोगों को प्रेरणा मिली। इन प्रयोगों के निष्कर्ष स्वरूप ज्ञात हुआ कि चिन्तन की प्रक्रिया में व्यक्ति के वाक् अंगों तथा जिह्वा आदि द्वारा कुछ-न-कुछ क्रिया अनिवार्य रूप से सम्पन्न की जाती है। इन प्रयोगों द्वारा यह ज्ञात नहीं किया जा सका कि भिन्न-भिन्न प्रकार के चिन्तन में वाक् अंगों तथा जिहा की क्रियाओं में क्या अन्तर होता है।

(7) परिवेशवाद का समर्थन - व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करने वाले कारकों में वंशानुक्रम तथा परिवेश को विशेष महत्त्व दिया जाता है। यहाँ तक वाटसन का प्रश्न है उसने वंशानुक्रम को कोई महत्त्व न देकर परिवेश अथवा पर्यावरण को अधिक महत्त्व दिया है। वाटसन ने स्पष्ट किया कि किसी भी बालक के परिवेश को पूर्णतया नियन्त्रित करके उसके व्यक्तित्व का अभीष्ट विकास किया जा सकता है। वाटसन ने दावा किया कि वह किसी भी बालक के परिवेश को नियन्त्रित करके उसको वकील, डॉक्टर, कलाकार, व्यापारी या भिखारी अथवा अपराधी बना सकता है। इसमें बालक की आनुवंशिकता कारक की कोई भूमिका नहीं होती है।

मनोविज्ञान तथा शिक्षा में व्यवहारवाद का योगदान एवं उपयोगिता

व्यवहार मनोविज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय सम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय ने मनोविज्ञान में वस्तुनिष्ठता को स्थापित करके उल्लेखनीय योगदान दिया। व्यवहारवाद की मान्यता है कि मनोविज्ञान को भी भौतिक विज्ञान के ही समान वस्तुष्ठि स्वरूप प्रदान किया जा सकता है। इसके साथ-साथ व्यवहारवाद ने यह भी स्पष्ट किया कि वह किसी भी दशा में भौतिकशास्त्र के नियमों एवं सिद्धान्तों की अनदेखी नहीं करना चाहता। व्यवहारवाद भौतिक शास्त्र के नियमों एवं सिद्धान्तों का पूरा-पूरा सम्मान करता है तथा उन्हें स्वीकार करता है। व्यवहारवाद मनोविज्ञान के क्षेत्र में किसी निष्कर्ष को प्राप्त करने के लिए किसी एक ही नियम या सिद्धान्त को ही पर्याप्त नहीं मानता। वह विभिन्न नियमों एवं सिद्धान्तों को विकल्पस्वरूप अपनाने के पक्ष में है।

मनोविज्ञान के क्षेत्र में वस्तुनिष्ठता को स्थापित करने के अतिरिक्त व्यवहारवाद ने प्रयोगात्मक अध्ययन को भी विशेष महत्त्व दिया है। हम कह सकते हैं कि मनोविज्ञान के क्षेत्र में प्रयोगात्मक अध्ययन भी व्यवहारवाद की ही देन है। व्यवहारवाद ने मनोविज्ञान के उन समस्त सम्प्रदायों (संरचनावाद तथा कार्यात्मवाद आदि) की कटु आलोचना की है जो मनोवैज्ञानिक तथ्यों के अध्ययन में आत्मनिष्ठ दृष्टिकोण तथा अन्तर्दर्शन विधि को अपनाने की बात कहते हैं।

व्यवहारवाद का मनोविज्ञान के क्षेत्र में एक अन्य उल्लेखनीय योगदान यह है कि इस सम्प्रदाय ने मनोविज्ञान के अध्ययन में आत्मा एवं चेतना जैसे प्रत्ययों को पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया। इनकी मान्यता है कि मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में चेतना तथा आत्मा की कोई चर्चा नहीं होनी चाहिए। मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में केवल शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक तथ्यों को ही स्थान दिया जाना चाहिए। इसी आधार पर कहा जाता है कि व्यवहारवाद ने मनोवैज्ञानिक अध्ययनों को जीवविज्ञान तथा मनोविज्ञान के मिश्रित रूप में प्रस्तुत किया है।

मनोविज्ञान के क्षेत्र में व्यवहारवाद का एक अन्य योगदान यह है कि इस सम्प्रदाय ने मनोविज्ञान में मनोभावों को कोई महत्त्व नहीं दिया जबकि पारम्परिक रूप से मनोविज्ञान में मनोभावों को विशेष महत्त्व दिया जाता था। व्यवहारवाद ने मनोभावों के स्थान पर मानसिक क्रियाओं को मनोवैज्ञानिक अध्ययन का विषय बनाया। इस सम्प्रदाय ने अपने अध्ययन क्षेत्र में मानसिक क्रियाओं को बोधगम्य बनाया। इसके लिए व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्ति के यन्त्रवत् अध्ययन का समर्थन किया। इस मान्यता को स्वीकार करते हुए इस सम्प्रदाय के मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों में केवल उन्हीं तथ्यों के अध्ययन को अपनाया जिनको प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है तथा उनका निरीक्षण किया जा सकता है।

मनोविज्ञान में योगदान के साथ-साथ व्यवहारवाद का शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान है। व्यवहारवाद अन्तर्दर्शन को स्वीकार नहीं करता तथा प्रत्येक क्षेत्र में वस्तुनिष्ठता को आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण मानता है। इस तथ्य के आधार पर कहा जा सकता है कि व्यवहारवाद ने शिक्षा के क्षेत्र में वस्तुनिष्ठता का समावेश किया है। व्यवहारवाद भौतिकवादी सिद्धान्तों तथा मानव-व्यवहार के यन्त्रवत् अध्ययन की आवश्यकता को मानता है। इन मान्यताओं का शिक्षा के क्षेत्र में विशेष महत्त्व एवं योगदान है। व्यवहारवाद से प्रेरित शिक्षाशास्त्री बालक को मानसिक संरचना के अध्ययन को प्राथमिकता न देकर बालक के व्यवहार के अध्ययन पर अधिक ध्यान केन्द्रित करते हैं। बालक के व्यवहार के अध्ययन के लिए वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण तथा उपायों को अपनाया जाता है। आज शिक्षा के क्षेत्र में अपनाए जाने वाले वस्तुनिष्ठ परीक्षण एवं निरीक्षण को व्यवहारवाद की ही देन स्वीकार किया जाता है।

पारम्परिक रूप से बालक या व्यक्ति के विकास में परिवेश को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था, केवल आनुवंशिकता को ही महत्त्वपूर्ण माना जाता था। व्यवहारवाद ने इस पारम्परिक मान्यता के स्थान पर परिवेश या पर्यावरण को अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया। वाटसन ने परिवेश को नियन्त्रित करके बालक के अभीष्ट विकास को निश्चित करने की बात कही। व्यवहारवाद की इस मान्यता को शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक उपयोगी एवं महत की व्यवस्था उसके्त्वपूर्ण माना जाने लगा। अब बालक की शिक्षा एवं परिवेश लक्ष्य के अनुसार की जाती है। यदि कोई बालक डॉक्टर या सैनिक बनना चाहता है तो उस बालक को उसके लक्ष्य के अनुकूल परिवेश तथा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। विशेषज्ञों के विकास के लिए अनुकूल परिवेश को अत्यावश्यक माना जाने लगा है।

व्यवहारवाद की सैद्धान्तिक मान्यता के अनुसार कोई शिक्षक यदि उद्दीपक तथा प्रतिक्रिया के आपसी सम्बन्ध को जान लेता है तथा उसे नियन्त्रित कर लेता है तो उस स्थिति में वह सम्बद्ध प्रतिक्रिया के सिद्धान्त को भी जान लेता है। इस स्थिति में वह शिक्षक सम्बन्धित बालक या छात्र को अपनी इच्छा के अनुसार विकसित करने के योग्य हो जाता है। व्यवहारवाद की मान्यता है कि व्यक्ति के व्यवहार का सम्बन्ध उसकी जैविक संरचना से भी होता है। इस तथ्य को ऐसे भी कहा जा सकता है कि व्यक्ति का व्यवहार केवल व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप ही सम्पन्न नहीं होता बल्कि व्यक्ति की जैविक संरचना से भी निर्धारित होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा के क्षेत्र में बालक की मानसिक क्षमताओं के साथ-साथ उसकी जैविक क्षमताओं को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है तथा उन्हीं के अनुकूल शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। व्यवहारवाद के इस सुझाव को ध्यान में रखकर की गई शिक्षा की व्यवस्था से शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करना सरल हो जाता है।

उपर्युक्त विवरण द्वारा स्पष्ट है कि व्यवहारवाद का मनोवैज्ञानिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय तथा व्यापक योगदान है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ बताइये एवं इसकी प्रकृति को संक्षेप में स्पष्ट कीजिये !
  2. प्रश्न- मनोविज्ञान और शिक्षा के सम्बन्ध का विवेचन कीजिये और बताइये कि मनोविज्ञान ने शिक्षा सिद्धान्त और व्यवहार में किस प्रकार की क्रान्ति की है?
  3. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की भूमिका या महत्त्व बताइये।
  4. प्रश्न- 'शिक्षा मनोविज्ञान का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। शिक्षक प्रशिक्षण में इसकी सम्बद्धता क्या है?
  5. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान की विकासात्मक विधि को समझाइये तथा इस विधि की विशेषताओं एवं सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
  6. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
  7. प्रश्न- शैक्षिक सिद्धान्त व शैक्षिक प्रक्रिया के लिये शैक्षिक मनोविज्ञान का क्या महत्त्व है?
  8. प्रश्न- मनोविज्ञान की विभिन्न परिभाषाओं को स्पष्ट कीजिये।
  9. प्रश्न- व्यवहारवाद की प्रमुख विशेषताएँ बताइए और आधुनिक भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में व्यवहारवाद सम्प्रदाय का क्या योगदान है?
  10. प्रश्न- व्यवहारवाद तथा शिक्षा के सम्बन्ध का उल्लेख कीजिए।
  11. प्रश्न- गैस्टाल्ट मनोविज्ञान का शैक्षिक महत्व बताते गेस्टाल्टवाद का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- प्रकार्यवाद क्या है? उल्लेख कीजिए। प्रकार्यवाद का सिद्धान्त बताइए।
  13. प्रश्न- अवयवीवाद (गेस्टाल्टवाद) की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  14. प्रश्न- फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद को समझाइये।
  15. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा की कुछ महत्त्वपूर्ण समस्याओं का समाधान करता है कैसे?
  16. प्रश्न- मनोविज्ञान में व्यवहारवाद की आवश्यकता का विश्लेषण कीजिए।
  17. प्रश्न- व्यवहारवाद क्या है? इसका शैक्षिक महत्व बताइये।
  18. प्रश्न- मनोविज्ञान के सम्प्रदाय का अर्थ तथा प्रकार का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- संरचनावाद का शिक्षा में क्या योगदान है?
  20. प्रश्न- अधिगम के अर्थ एवं प्रकृति की विवेचना कीजिए। अधिगम एवं परिपक्वता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  21. प्रश्न- अधिगम की परिभाषा बताइए।
  22. प्रश्न- अधिगम की प्रकृति समझाइये।
  23. प्रश्न- परिपक्वता और सीखने में क्या अन्तर है?
  24. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन-से हैं? उन्हें स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- अधिगम को प्रभावित करने वाले अध्यापक से सम्बन्धित कारक कौन-से हैं?
  26. प्रश्न- विषय से सम्बन्धित अधिगम को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- अधिगम के वातावरण सम्बन्धी कारकों का वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- 'अनुबन्धन' से क्या अभिप्राय है? पावलॉव और स्किनर के सीखने के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को नियंत्रित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  30. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं?
  31. प्रश्न- प्रानुकूलित अनुक्रिया से आप क्या समझते हैं? इस सिद्धान्त का शिक्षा में प्रयोग बताइये।
  32. प्रश्न- अनुकूलित-अनुक्रिया सिद्धान्त का मूल्यांकन कीजिए।
  33. प्रश्न- स्किनर द्वारा सीखने के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- थार्नडाइक द्वारा प्रतिपादित अधिगम के विभिन्न नियमों का उल्लेख कीजिए।
  35. प्रश्न- थार्नडाइक के उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- गेस्टाल्ट का समग्राकृति अथवा अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त क्या है?
  37. प्रश्न- स्किनर के सक्रिय अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त के शिक्षा में प्रयोग को समझाइये |
  38. प्रश्न- थार्नडाइक के सम्बन्धवाद अथवा प्रयास व त्रुटि के सिद्धान्त के द्वारा अधिगम को समझाइये |
  39. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण क्या है? अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइये।
  40. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण के प्रकार बताइए।
  41. प्रश्न- अधिगम स्थानान्तरण की दशाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- अधिगमान्तरण के विभिन्न सिद्धान्तों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर अभिप्रेरणा का अर्थ स्पष्ट करते हुए अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- अभिप्रेरणा के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- अभिप्रेरणा को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं? उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- 'प्रेरणा' के सम्प्रत्यय का वर्णन कीजिए। छात्रों को अभिप्रेरित करने के लिए आप किन तकनीकों या विधियों का प्रयोग करेंगे?
  47. प्रश्न- अभिप्रेरणा क्या है? अभिप्रेरणा एवं व्यक्तित्व किस प्रकार सम्बन्धित हैं?
  48. प्रश्न- अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है? अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  49. प्रश्न- अभिप्रेरणा के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  50. प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल प्रवृत्ति सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  51. प्रश्न- अभिप्रेरणा का मूल मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- अभिप्रेरणा का उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धान्त को समझाइये |
  53. प्रश्न- शैक्षिक दृष्टि से अभिप्रेरणा का क्या महत्त्व है?
  54. प्रश्न- विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर बुद्धि का अर्थ स्पष्ट करते हुये बुद्धि की प्रकृति या स्वरूप तथा उसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
  55. प्रश्न- बुद्धि की प्रकृति एवं स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- बुद्धि की विशेषताओं को समझाइये |
  57. प्रश्न- बुद्धि परीक्षा के विभिन्न प्रकार कौन-से हैं? वैयक्तिक व सामूहिक बुद्धि परीक्षा की तुलना कीजिये।
  58. प्रश्न- सामूहिक बुद्धि परीक्षण से आप क्या समझते हैं?
  59. प्रश्न- शाब्दिक व अशाब्दिक तथा उपलब्धि परीक्षण को स्पष्ट कीजिये।
  60. प्रश्न- वाचिक अथवा अवाचिक वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण से क्या अभिप्राय है? उल्लेख कीजिये।
  61. प्रश्न- स्टैनफोर्ड बिने मानदण्ड क्या है?
  62. प्रश्न- बर्ट द्वारा संशोधित बुद्धि परीक्षण को बताइये।
  63. प्रश्न- अवाचिक वैयक्तिक बुद्धि परीक्षण के प्रकार बताइये।
  64. प्रश्न- वाचिक सामूहिक बुद्धि परीक्षण कौन से हैं?
  65. प्रश्न- अवाचिक सामूहिक बुद्धि परीक्षणों का वर्णन कीजिये।
  66. प्रश्न- बुद्धि परीक्षण के विभिन्न उपयोगों पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- आई. क्यू. (I.Q.) से क्या तात्पर्य है? यह कैसे नापा जाता है? क्या आई. क्यू. स्थायी होता है? बुद्धि कहाँ तक पितृगत होती है? अपने उत्तर के समर्थन में प्रयोगात्मक प्रमाणों का उल्लेख कीजिये।
  68. प्रश्न- क्या आई. क्यू. (बुद्धिलब्धि) स्थायी होती है?
  69. प्रश्न- बुद्धि कहाँ तक पितृगत (वंशानुगत) होती है?
  70. प्रश्न- बुद्धि के स्वरूप व प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- बुद्धि के विभिन्न सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- बुद्धि-लब्धि क्या है?
  73. प्रश्न- बुद्धि की पहचान किन तथ्यों के माध्यम से की जा सकती है? व्याख्या कीजिए।
  74. प्रश्न- व्यक्तिगत भिन्नता से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों एवं प्रकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- व्यक्तिगत भिन्नता होने के क्या-क्या कारण हैं?
  76. प्रश्न- व्यक्तिगत भिन्नता कितने प्रकार की होती है? प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- व्यक्तिगत भिन्नता मापने की विधियाँ बताइये।
  78. प्रश्न- व्यक्तिगत भिन्नता और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
  79. प्रश्न- व्यक्तिगत विभिन्नता का शिक्षा में क्या महत्व है?
  80. प्रश्न- वैयक्तिक विभिन्नता से आप क्या समझते है? शिक्षा में इसके महत्व का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- वैयक्तिक विभिन्नताओं के मापन पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- वैयक्तिक विभिन्नता का मापन व्यक्तित्व परीक्षा द्वारा कैसे किया जाता है?
  83. प्रश्न- परीक्षण के बाद व्यक्तिगत विभिन्नता का मापन बताइए।
  84. प्रश्न- उपलब्धि परीक्षण से व्यक्तिगत विभिन्नता का मापन बताइये।
  85. प्रश्न- वैयक्तिक भिन्नता पर आधारित शिक्षण प्रविधियों का उल्लेख कीजिए।
  86. प्रश्न- डेक्रोली शिक्षण योजना को स्पष्ट कीजिए।
  87. प्रश्न- कॉन्ट्रेक्ट शिक्षण योजना तथा प्रोजेक्ट शिक्षण योजना का वर्णन कीजिए।
  88. प्रश्न- डाल्टन योजना को स्पष्ट कीजिए।
  89. प्रश्न- अभिक्रमित अनुदेशन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- निष्पत्ति लब्धि की व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- शिक्षा-लब्धि पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- निष्पत्ति परीक्षण की शैक्षिक उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- व्यक्तित्व के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिये।
  94. प्रश्न- थार्नडाइक ने व्यक्तित्व को कितने भागों में विभाजित किया है?
  95. प्रश्न- स्प्रैगर के अनुसार व्यक्तित्व के प्रकार बताइए।
  96. प्रश्न- युंग द्वारा बताए गए व्यक्तित्व के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- व्यक्तित्व क्या है? व्यक्तित्व का निर्धारण करने वाले जैविक एवं वातावरणजन्य कारकों का विवेचन कीजिये।
  98. प्रश्न- व्यक्तित्व के प्रमुख गुणों (विशेषताओं) या शीलगुण सिद्धान्त का विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  99. प्रश्न- व्यक्तित्व के निर्धारण में वंशानुक्रम तथा पर्यावरण की भूमिका बताइए।
  100. प्रश्न- व्यक्तित्व निर्धारण में विद्यालय कैसे प्रभाव डालता है?
  101. प्रश्न- व्यक्तित्व की संरचना से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  102. प्रश्न- फ्रायड के सिद्धान्त के प्रमुख तत्व बताइये।
  103. प्रश्न- फ्रायड द्वारा बताई गई रक्षा युक्तियों को समझाइये।
  104. प्रश्न- व्यक्तित्व की संरचना से सम्बन्धित युंग के सिद्धान्त को बताइये।
  105. प्रश्न- युंग के अनुसार व्यक्तित्त्व का वर्गीकरण कीजिये।
  106. प्रश्न- व्यक्तित्व क्या है? व्यक्तित्व मापन के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- व्यक्ति की किशोरावस्था या प्रौढ़ावस्था में उसके मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार संरक्षित किया जा सकता है?
  108. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था में मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार से संरक्षित किया जायेगा?
  109. प्रश्न- कौन-कौन से कारक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा नामे रखने के उपाय बताइए।
  110. प्रश्न- शिक्षक के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने के उपाय बताइये।
  111. प्रश्न- मानसिक द्वन्द्व से आप क्या समझते हैं? इसके क्या कारण हैं?
  112. प्रश्न- मानसिक द्वन्द्व के स्रोत बताइए।
  113. प्रश्न- समायोजन से क्या आशय है? विद्यालयी बालकों में कुसमायोजन के कारण बताइये।
  114. प्रश्न- समायोजन की विशेषताएँ बताइये।
  115. प्रश्न- विद्यालयी बालकों में कुसमायोजन के लिए कौन-कौन से कारण उत्तरदायी हैं? उनका वर्णन कीजिए।
  116. प्रश्न- बचाव (समायोजन) क्या है? प्रमुख बचाव (समायोजन) यंत्रीकरणों को उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिए।
  117. प्रश्न- 'संघर्ष' को परिभाषित कीजिए।
  118. प्रश्न- भग्नाशा (कुंठा) को परिभाषित कीजिए। भग्नाशा के प्रमुख कारणों की चर्चा कीजिए।
  119. प्रश्न- दुश्चिंता पर टिप्पणी लिखिए।
  120. प्रश्न- समायोजन स्थापित करने की विभिन्न तकनीकों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- तनाव प्रबन्धन क्या है?
  122. प्रश्न- समायोजन विधि को संक्षेप में समझाइये।

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